अध्याय ५ब्राह्मण १४ ६४५ उपासना करता है, वह तीनों लोक में जो कुछ प्राप्तव्य है उसको जीतता है ॥ १॥ मन्त्रः २ ऋचो यपि सामानीत्यष्टावक्षराएयष्टाक्षरछ ह वा एक गायच्य पदमेतदु हैवास्या एतत्स यावतीयं त्रयी विद्या तावद्ध जयति योऽस्या एतदेवं पदं वेद । पदच्छेदः। ऋचः, यजूषि, सामानि, इति, अष्टौ, अक्षराणि, अष्टा- क्षरम् , E, वा, एकम् , गायौ, पदम्, एतत्, उ, ह, एव, अस्याः, एतत् , सः, यावती, इयम्, त्रयी, विद्या, तावत्, ह, जयति, यः, अस्याः, एतत् , एवम् , पदम्, वेद ॥ अन्वय-पदार्थ । ऋचः, च, । यजूंपिय, जू, पि, सामानि-सा, मा, नि,। इति इस प्रकार । अष्टौप्राउ। अक्षराणि अक्षर हैं। एतत् उ-सोई । गायत्र्य-गायत्री का । अष्टाक्षरम्-पाठ अक्षर वाला। एक-एक । पदम् "भ, गों, दे,व, स्य, धी, म, हि" पाद है। यःो । अस्याःइस गायत्री के। पदम् इस एक पादको+ह-भली प्रकार | वेद-जानता है। याजो।अस्याः- इस गायत्री के । एतत् इस । पदम्पादको। हभली प्रकार । पवम् कहे हुये प्रकार । वेद-जानता है यानी उपासना करता है। सावह । यावती-जितनी। इयम् यह । ती तीनों विद्या- विद्या हैं । तावत् ह उतनी इन विद्याओं के फल को। जयति पाता है यानी जो तीनों वेदी करके प्राप्त होने योग्य है उस सब को वह उपासक पाता है।
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