अध्याय'१ ब्राह्मण ३ और । मृत्युम्-मृत्यु को। अति-अतिक्रमण करके। एनाः वागादि देवताओं को । अवहत्-उत्तम पदवी 'को प्राप्त करता भया। . भावार्थ। हे सौम्य ! यही मुख्य प्राणदेवता वागादि देवताओं के पापरूप मृत्यु को उनसे पृथक् करके और उसको पकड़कर और स्वतः मृत्यु को आक्रमण करके उन्हीं वागादि देवताओं को उत्तम पदवी पर प्राप्त करता भया और तभी से वे निष्पाप और अमर हैं ॥ ११॥ मन्त्रः १२ स वै वाचमेव प्रथमामत्यवहत्सा यदा मृत्युमत्य- मुच्यत सोऽग्निरभवत्सोऽयमग्निः परेण मृत्युमतिक्रान्तो दीप्यते ॥ पदच्छेदः। सः, वै, वाचम् , एव, प्रथमाम्, अति, अवहत् , सा, यदा, मृत्युम्, अति, अमुच्यत, सः, अग्निः, अभवत् , सः, अयम् , अग्निः, परेण, मृत्युम् , अतिक्रान्तः, दीप्यते ।। अन्वय-पदार्थ। साबह प्राणदेव । वै-निश्चय करके I+ मृत्युम्-पापरूप + अतीत्य अतिक्रमण कर । प्रथमाम्सवों में श्रेष्ठ । चाचम्-वाणी को। एव-ही। अवहत्-मृत्यु से परे ले गया। यदा-जब । सान्त्रह वाणी । मृत्युम् मृत्यु को। अति अतिक्रमण करके । अमुच्यत-स्वयं पाप से मुक्त हो गई। + त.दान्तब! सावह वाणी। सः अग्निः वह अग्नि। मृत्यु को।
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