बृहदारण्यकोपनिषद् स० अयम्-यह राजा । आयाति-पा रहा है । अयम्-यह । इति-अब । श्रागच्छति-प्रा पहुंचता है । एवम् एव-इसी प्रकार । सर्वाणि-सव । भूतानि-प्राणी यानी सूर्यादि देवता । ह-निश्चय करके । एवंविदम् इस प्रकार जाननेवाले के लिये यानी ज्ञानी पुरुष के लिये । प्रतिकल्पन्ते राह देखते रहते हैं। + च-और । इति ऐसा। वदन्ति कहते हैं कि । इदम् यह । ब्रह्मन्ब्रह्मवित्पुरुष । आयाति-आता है । इदम्-यह ग्रह पुरुप । आगच्छति-श्रा रहा है। भावार्थ। याज्ञवल्क्य महाराज कहते हैं कि, हे राजा जनक/ ऊपर कहे हुये विषय में यह दृष्टान्त है कि जैसे भयंकर कर्म करनेवाले पुलिस आदिक और पापकर्म के दण्ड देनेवाले हाकिम और गांव गांव के मुखिया लोग अन्नादि और दूध जल आदि और रहने के लिये मकान, खेमा, तम्बू श्रादि एकत्र करके आते हुए राजा की राह देखते ह ऐसा कहते हुये कि हमारा राजा आ रहा है, यह आ पहुँचा है, इसी प्रकार सब प्राणी यानी सूर्य आदि देवता निश्चय करके इस ज्ञानी के लिये राह देखा करते हैं ऐसा कहते हुये कि देखो वह ब्रह्मवित् आता है वह पा रहा है ॥ ३७॥ मन्त्र:३८ तद्यथा राजानं प्रयियासन्तमुग्राः प्रत्येनसः सूतग्रा- मएयोऽभिसमायन्त्येवमेवेममात्मानमन्तकाले सर्वे प्राणा अभिसमायन्ति यत्रैतर्बोच्छवासी भवति । इति तृतीयं ब्राह्मणम् ॥ ३ ॥
पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/५५०
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।