अध्याय ४ ब्राह्मण ३ ५३५ उस समय (जैसे आम का पक्का फल या गूलर का पक्का फल, अथवा पीपल का पक्का फल, वायु के वेग करके अपने डंठे से गिर पड़ता है उसी प्रकार .) यह जीवात्मा अपने इस्त पादादिक अवयवों से छूटकर और दूसरे शरीर निमित्त कर्मफल भोगार्थ जाता है ॥ ३६॥ मन्त्र: ३७ तद्यथा राजानमायान्तमुग्राः प्रत्येनसः सूतग्रामएयोऽन्नैः पानरावसथैः प्रतिकल्पन्तेऽयमायात्ययमागच्छतीत्येवई हैवंविदछ सर्वाणि भूतानि प्रतिकल्पन्त इदं ब्रह्मायाती- दमागच्छतीति ।। पदच्छेदः। तत्, यथा, राजानम्, आयान्तम्, उग्राः, प्रत्येनस:, सूतग्रामण्यः, अन्नैः, पानैः, आवसथैः, प्रतिकल्पन्ते, अयम् , आयाति, अयम् , आगच्छति, इति, एवम् , ह, एवंविदम् , सर्वाणि, भूतानि, प्रतिकल्पन्ते, इदम् , ब्रह्म, आयाति, इदम्, आगच्छति, इति ॥ तत्-ऊपर कहे विषय में + दृष्टान्त: दृष्टान्त है कि यथा जैसे । उग्रा-भयंकर कर्म करनेवाले पुलिस श्रादिक। प्रत्येनस:- पाप के दण्ड देनेवाले मजिस्ट्रट लोग । सूतग्रामण्या-गांव गांव के . मुखिया लोग । अन्नैः चावल, गेहूं, चनादि अन्न से । पानः पीने के योग्य दूध, दही, घृत से । श्रावसथैः-रहने के योग्य 'मकान, खेमा, तम्बू धादि से यानी इन सब को इकट्ठा करके । श्रायान्तम्-याते हुए । राजानम्-राजा की । प्रतिकल्पन्ते- राह देखते हैं। च-और । इति-ऐसा । वदन्ति कहते हैं कि ।
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