1 बृहदारण्यकोपनिषद् स० सहायता करके । ना हमारे ऊपर । अत्येष्यन्ति-देवता अति- मनो- क्रमण करेंगे । इति इसलिये । + ते-वे असुर । तम्-उस देव उद्गाता के । अभिद्रुत्य-सामने जाकर । तम्-उसको। पाप्मना-पाप अस्त्र करके । अविध्यन्-वेध करते भये । यत्- जिसी कारण । एव-निश्चय करके । सःवही । सः यह प्रसिद्ध । एव=निस्सन्देह । पाप्मा-पाप है। यःजो । सः वह मन में स्थित हुआ । साम्प्रसिद्ध । पापमा पाप । इदम्-इस । अप्रति- रूपम्-अयोग्य वस्तु को । संकल्पयति-संकल्प करता है। उ% इसी प्रकार । खलु-निश्चय करके। एताम्-इन यानी । देवता:- त्वचा आदि इन्द्रियाभिमानी देवताओं को भी। पाप्मभिः पाप करके । ते-वे असुर । अविध्यन् वेध करते भये । एवम्-इसी प्रकार । एता:-इन स्वचादि देवताओं को । पाप्मभिः पापों करके । उपासजन्संसर्ग करते भये । भावार्थ। हे सौम्य ! तदनन्तर वे सब देवता मनोदेव से कहते भये कि हे मन ! तू उद्गाता बनकर हमारे लिये उद्गीथ का गान कर, उसने कहा बहुत अच्छा, ऐसा ही करूँगा, और फिर वह मनोदेव उन देवताओं के लिये गान करता भया, मन बिषे जो आनन्दादि फल है, उसको देवताओं के लिये मन देवता तीन पवमान स्तोत्रों करके गान करता भया, और जो जो उसमें मंगलदायक वस्तु है, उसको नव पवमान स्तोत्रों करके अपने लिये गाता भया, तब असुरों ने देखा कि वे सब देवता इस मनोदेव उद्गाता की सहायता करके हमारे ऊपर आक्रमण करेंगे, इसलिये वह असुर उस मनोदेव उद्गाता के सामने जाकर उसको अपने पापअस्त्र करके वेधित करते भये, . और
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