४८२ वृहदारण्यकोपनिपद् स० प्रकाश करके अपना व्यवहार करता है ? याज्ञवल्क्य महा. राज ने उत्तर दिया कि यह पुरुष सूर्य और चन्द्रमा के अस्त होने पर अग्नि की ज्योति करके प्रकाशमान होता है यानी काम करने के योग्य होता है, क्योंकि यह पुरुष अग्नि के प्रकाश करके बैठना है, इधर उधर फिरता है, कर्म करता है, और कर्म करके अपने स्थान पर वापस आ जाता है, ऐसा सुनकर जनक महाराज ने कहा, हे मुने ! यह ऐसाही है जैसा आपने कहा है ॥ ४ ॥ , . मन्त्रः ५ अस्तमित आदित्ये याज्ञवल्क्य चन्द्रमस्यस्तमिते शान्तेऽग्नौ किंज्योतिरेवायं पुरुष इति वागेवाऽस्य ज्यो- तिर्भवतीति वाचैवाऽयं ज्योतिपाऽऽस्ने पल्ययने कर्म कुरुते विपल्येतीति तस्माई सघाडपि यत्र स्वः पाणिर्न विनि- ज्ञातेऽथ यत्र वागुञ्चरत्युपैव तत्र न्येतीत्येवमेवैतद्याज्ञवल्क्या। पदच्छेदः। अस्तमिते, आदित्ये, याज्ञवल्क्य, चन्द्रमसि, अस्तमिते, शान्ते, अग्नौ, किंज्योतिः, एव, अयम् , पुरुषः, इति, वाक्, एब, अस्य, ज्योतिः, भवति, इति, वाचा, एव, अयम्, ज्योतिषा, आस्ते. पल्पयते, कर्म, कुरुते, विपल्यति, इति, वै, सम्राट्, अपि, यत्र, स्वः, पाणिः, न, विनि- आयते, अथ, यत्र, वाक्, उच्चरति, उप, एत्र, तत्र, न्यति, इति, एवम्, एव, एतत् , याज्ञवल्क्य ॥ - - 3
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