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बृहदारण्यकोपनिषद् स० भावार्थ । याज्ञवल्क्यं फिर पूछते हैं जो वृक्ष जड़से काटा गया है. वह फिर नहीं उत्पन्न होता है तब मृतक पुरुप कैसे उत्पन्न होगा यानी उसकी उत्पत्ति का कारण कौन हो सकता है । जब किसी ब्राह्मण ने इसका उत्तर नहीं दिया तब याज्ञवल्क्य ने स्वतः कहा कि मरे हुए पुरुप की उत्पत्ति का कारण ज्ञानस्वरूप आनन्दस्वरूप ब्रह्म है वह यज्ञ करनेवालों का और ब्रह्मज्ञानियों का परम आश्रय है ॥ २७-७ ।। इति नवमं ब्राह्मणम् ।।१।। इति श्रीबृहदारण्यकोपनिपदि भापानुवादे तृतीयोऽध्यायः ॥ ३ ॥