पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/४४३

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अध्याय .३ ब्राह्मण १.. ४२१ भावार्थ । हे ब्राह्मणो! जो कटा हुआ वृक्ष है उसकी जड़ से नवीन वृक्ष उत्पन्न होते हैं यह आपको विज्ञात है तव बताइये मृत्यु करके कटा हुश्रा मनुष्य किस मूल यानी जड़ से उत्पन्न होता है यह मेरा प्रश्न है इसका उत्तर आप लोग दें।।२७-४॥ मन्त्र: २७-५ रेतस इति मा वोचत जीवतस्तत्मजायते । धानारुह इव वै वृक्षोञ्जसा प्रेत्य संभवः ।। पदच्छेदः। रेतसः, इति, . मा, वोचत, जीवतः, तत्, प्रजायते, धानारुहः, इव, वै, वृक्षः, अभंसा, प्रेत्य, संभवः ।। अन्वय-पदार्थ। रेतसः मरे हुये पुरुष के वीर्य से । + रोहति-पुरुप प्रादुर्भुत होता है । इति-ऐसा । मा-नहीं। वोचत-कह सकते हैं। हिक्योंकि । तत्वह वीर्य । जिीवता जीते हुये पुरुप: से। प्रजायते-उत्पन्न होता है मरे से नहीं । च-और । धानारुहः- बीज से उत्ल हुथा । वृक्षः इव-वृक्ष । अञ्जला-शीघ्र । प्रत्य: नष्ट होकर । भी । धानातःचीज से । संभवः उत्पन्न हो - चाता है। भावार्थ । अब वृक्ष और पुरुष की समानता दिखलाकर याज्ञवल्क्य प्रश्न करते हैं, हे ब्राह्मणो ! जब जड़ छोड़ कर वृक्ष काटा जाता है तव पुनः मूल से और नवीन वृक्ष उत्पन्न होता है यह आप लोग प्रत्यक्ष देखते हैं परन्तु जब मरणधर्मी पुरुष