पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/४२

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बृहदारण्यकोपनिषद् स. अन्वय-पदार्थ । ह यह कहा गया है कि । प्राजापत्या:प्रजापति के सन्तान । द्वया: दो प्रकार के थे । देवा-एक देवता । च-दूसरे । असुराः च-थसुर । ततः r:-उनमें से । देवा:-देवता । कानीयसाः एक% असुरों की अपेक्षा कम थे । + च-और । असुरा:-असुर । ज्यायसा-देवताओं से ज़्यादा थे। ते-वे दोनों । एपु-इन । लोकेपु-लोकों या शरीरों में । अत्पर्धन्त-एक दूसरे के दबाने के लिये इच्छा करते भये । ह-तत्पश्चात् । तेचे । देवा:-देवता। ऊचुः विचार करते भये कि । हन्त-यदि सबकी अनुमति हो तो। + वयम् हम । यज्ञे ज्योतिष्टोम नामक यज्ञ में । उद्गीथेन- उद्रीय की सहायता करके । असुरान्-असुरों के ऊपर । अत्य- याम इति-अतिक्रमण करें भावार्थ । हे सौम्य ! ऐसा सुना गया है कि प्रजापति के सन्तान दो प्रकार के हुए, इनमें से एक देवता थे, दूसरे असुर थे, असुर देवताओं की अपेक्षा संख्या में ज़्यादा थे, और देवता असुरों की अपेक्षा संख्या में कम थे, वे दोनों लोकों या शरीरों में एक दूसरे के दबाने के लिये इच्छा करते भये, तिसके पीछे देवताओं को मालूम हुआ कि असुर हमको दवा लेंगे, तब वे आपस में एक दूसरे से कहने लगे कि यदि सबकी अनुमति हो तो ज्योतिष्टोम नामक यज्ञ में उद्गीथ की सहायता करके असुरों पर अतिक्रमण करें ।। १ ।। मन्त्रः २ ने ह वाचमूचुस्त्वं न उद्गायेति तथेति तेभ्यो वागु- दगायत् यो वाचि भोगस्तं देवेभ्य आगायद्यत्कल्याणं .