अध्याय ३ ब्राह्मण. है, यदि आप उस पुरुष को जानते हैं तो आपही ज्ञानी और सब में श्रेष्ठ हैं, यह सुन कर याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया, हे शाकल्य ! जिस पुरुप के बाबत आप कहते हैं और जो सब जीवों का उत्तम श्राश्रय है और जो श्रोत्रसम्बन्धी पुरुप है उसको मैं निस्संदेह जानता हूं, हे शाकल्य ! वही श्रोत्र- सम्बन्धी पुरुष तुम्हारा भी आत्मा है, हे शाकल्य ! जो तुम्हारी इच्छा हो पूछो ? मैं उस का उत्तर अवश्य दूंगा ऐसा सुन कर शाकल्य ने प्रश्न किया श्रोत्रसम्बन्धी पुरुष का देवता यानी कारण कौन है ? याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया कि दिशा हैं ॥ १३ ॥ मन्त्रः १४ तम एव यस्यायतनछ हृदयं लोको मनो ज्योतियों चैतं पुरुपं विद्यात्सर्वस्यात्मनः परायण, स वै वेदिता स्यात् । याज्ञवल्क्यं वेद वा अहं तं पुरुपर्छ सर्वस्यात्मनः परायणं यमात्थ य एवायं छायामयः पुरुषः स एष वदेव शाकल्य तस्य का देवतेति मृत्युरिति होवाच ॥ पदच्छेदः। तमः, एव, यस्य, आयतनम्, हृदयम् , लोकः, मन:, ज्योतिः, यः, वै, तम्, पुरुपम् ; विद्यात् , सर्वस्य, आत्मनः, परायणम् , सः, वै, वेदिता, स्यात् , याज्ञवल्क्य, वेद, वै, अहम् , तम्, पुरुषम्, सर्वस्य, आत्मनः, परायणम् , यम्, श्रात्य, यः, एव, अयम्, छायामयः, पुरुषः, सः, एषः, वद, एव,शाकल्य, तस्य, का, देवता, इति, मृत्युः, इति, ह, उवाच ॥
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