पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/४११

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अध्याय ३ ब्राह्मण ९ ३१७ 2 अगर आप जानते हैं तो मैं आपको सबका वेत्ता मानूंगा, ऐसा सुनकर याज्ञवल्क्य ने कहा हे विदग्ध ! जो सबके आत्मा का परम आश्रय है, और जिसको तुम सब जीवों का परम आश्रय कहते हो मैं उस पुरुष को जानता हूं वहीं पुरुष सूर्य है, वही पुरुप तुम्हारे बिपे स्थित है, हे शाकल्य, विदग्ध ! पूछो और क्या पूछते हो, इसपर विदग्धने पूछा, उस पुरुप का कारण कौन है, इसके उत्तर में याज्ञवल्क्य कहते हैं कि इसका कारण ब्रह्म है ॥ १२ ॥ मन्त्र: १३ आकाश एव यस्यायतन श्रोत्रं लोको मनो ज्यो- तियों वै तं पुरुषं विद्यात्सर्वस्यात्मनः परायण, स वै वेदिता स्यात् । याज्ञवल्क्य वेद वा अहं तं पुरुषसर्व- स्यात्मनः परायणं यमात्थ य एवायथं श्रौत्रः प्रातिश्रुत्कः पुरुषः स एष वदैव शाकल्य तस्य का देवतेति दिश इति होवाच ॥ पदच्छेदः। आकाशः, एव, यस्य, आयतनम्, श्रोत्रम् , लोकः, मनः, ज्योतिः, यः, वै, तम्, पुरुषम् , विद्यात्, सर्वस्य, परायणम्, सः, वै, वेदिता, स्यात्, याज्ञवल्क्य, वेद, वै, अहम् , तम् , पुरुषम् , सर्वस्य, आत्मनः, परायणम् , यम् , आत्थ, यः, एव, अयम्, श्रौत्रः, प्रातिश्रुत्कः, पुरुषः, सः, एषः, वद, एव, शाकल्य, तस्य, का, देवता, इति, दिशः, इति, ह, उवाच ॥ आत्मनः, .