अध्याय १ ब्राह्मण ३ २५ निश्चय करके अश्वमेध है, इस सूर्य का शरीर संवत्सर है, यह अश्वमेध अग्नि निश्चय करके सूर्य है, इसके अंग भर्. भुवः, स्वः, ये तीन लोक हैं, और अग्नि सूर्य है, सूर्य अश्व- मेध है, और ये दोनों देवता यानी अग्नि और सूर्य दोनों मिला कर एक प्रजापति देवता है, जो उपासक इस प्रकार जानता है, वह आनेवाले मृत्यु को जीत लेता है, क्योंकि ऐसे ज्ञाता के पास मृत्यु नहीं आता है, क्योंकि वह मृत्यु उस ज्ञाता का श्रात्मा होता है, और वह इस प्रकार का जाननेवाला पुरुष देवतारूप हो जाता है यानी प्रजापति हो जाता है ।। ७ ।। इति द्वितीयं ब्राह्मणम् ॥ २ ॥ अथ तृतीयं ब्राह्मणम् । दया ह प्राजापत्या देवाश्चासुराश्च ततः कानीयसा एव देवा ज्यायसा असुरास्त एषु लोकेष्वस्पर्धन्त तेह देवा ऊचुर्हन्ताऽसुरान्यज्ञ उद्गीथेनात्ययामेति ॥ पदच्छेदः। दूया:,६, प्राजापत्याः, देवाः, च, असुराः, च, कानीयसाः, एव, देवाः, ज्यायसाः, असुराः, ते, एपु, लोकेपु, अस्पर्धन्त, ते, ह, देवाः, ऊचुः, हन्त, असुरान् , यज्ञे, उद्गीथेन, अत्ययाम, इति ॥ ततः,
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