३८८ बृहदारण्यकोपनिपद् म० एपु. हि, इमे, सर्वे, देवाः, इति, कतमी, तो, द्वौ, देवो, इति, अन्नम्, च, एव, प्राण:, च, इति. कतमः, अध्यर्द्धः, इति, यः, अयम् , पवते, इति । अन्वय-पदार्थ। ते-वे । त्रयः-तीन । देवाः-देवता । कतमे कौन हैं । इति ऐसा प्रश्न I + श्रुत्वा-सुन कर I + यामवल्क्याम्याक्ष- वल्क्य ने । + श्राह-कहा कि । + तेवे। इमेन्ये । एवम्ही । त्रया-तीनों । लोकालोक हैं । हि-क्योंकि । पपु-इनमें ही । इमे-ये । सर्वे सब । देवा: देवता । इति अन्तर्गत है । + पुनःफिर । शाकल्यः विदग्ध । + पप्रच्छ -पड़ते हैं कि । तौ-वे । द्वौ-दो । देवी-देवता । कतमौकीन हैं। इति इस पर । + याज्ञवल्क्या-याज्ञवल्कग ने । श्राह-उत्तर दिया। +तो-वे दोनों देवता । एव-निश्चय करके । अन्नम्म्यन्न । च और । प्राण-प्राण हैं । इति-इम उत्तर पर । + पुनःफिर। पप्रच्छ हि-पूछते हैं कि । याज्ञवल्क्य हे याज्ञवल्क्य ! अध्यद्धः अध्यर्द्ध । कतमः कौन देवता है । इति इसको + श्रुत्ग-सुन कर । + याज्ञवल्क्यः याज्ञवल्क्य ने । + आह= कहा। याजो। श्रयम्-यह वायु । इतिरेमा। पनते-चलता है। सम्वही यह अध्यई है। भावार्थ। विदग्ध पूछते हैं कि, हे याज्ञवल्क्य ! श्रापन पहिले कहा था कि तीन देवता हैं; आप कृपा करके बनाइये कि वे तीन देवता कौन कौन हैं, इम पर याज्ञवल्क्य कहते हैं, हे विदग्ध ! वे तीन देवता यही तीनों लोक हैं, क्योंकि व सब देवता इन्हीं तीनों लोकों में रहते हैं, इसका यह है कि 1 मतलब
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