अध्याय १ ब्राह्मण २ २३ - को। आलभत-अग्नि में समर्पण करता भया । पशून्-और बहुतेरे पशुओं को भी । देवताभ्यः देवताओं के लिये । प्रत्यौ- हत् संप्रदान करता भया । +तस्मात्-इसलिये । सर्वदेवत्यम्- सब देवताओं को आवाहन किया गया है जिसमें ऐसे । प्रोक्षि- तम्-पविन किये हुए । प्राजापत्यम्प्रजापति देवतावाले घोड़े को।+ याक्षिकाइदानींकाल के यज्ञकर्ता । आलभन्ते यज्ञ विपे संप्रदान करते हैं । यःजो सूर्य । तपति-प्रकाशित होता है । एप: वही । ह वा निश्चय करके । अश्वमेधः अश्वमेध है । तस्य-उसी सूर्य का । एषः यह । श्रात्मा शरीर । संव- त्सरः संवत्सर है। अयम्-यह । अग्निः अश्वमेधाग्नि ही । अर्क:-सूर्य है । तस्व-उसी के । श्रात्मानः-अंग । इमे-ये । लोकाः तीनों लोक हैं । तो अग्नि और सूर्य । एतौ-ये दोनों अग्नि और सूर्य हैं । श्राश्वमेधौ-यानी अश्व सूर्य और सूर्य अश्वमेध है । उ-और । पुनः फिर । + तौ-वे दोनों देवता यानी अग्नि और सूर्य । एका-मिलाकर । सा-वह । एवम्ही । देवता+मृत्युः भवतिप्रजापति देवता है सोई मृत्यु है । यः जो उपासक । +एवम् इस प्रकार । +वेद जानता है । +सः= वह । पुनः श्रानेवाली । मृत्युम्-मृत्यु को। अपजयति जीत लेता है । एनम् ऐसे ज्ञाता को । मृत्युः मौत । न-नहीं । प्राप्नोतिप्राप्त होती है । + हिक्योंकि । मृत्यु-मृत्यु ही । अस्य-उस ज्ञाता का । आत्मा-प्रात्मा । सवति हो जाता है। + किंच-और । + सम्वह ज्ञाता । एतासाम्-इन । देवता. नाम्-देवताओं का । एका-एकस्वरूप । भवति होता है यानी तदाकार हो जाता है। भावार्थ। हे सौम्य ! प्रजापति ने ऐसी इच्छा की कि यह मेरा । &
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