अध्याय ३ब्राह्मण ८ ३७५ इन्द्रिय का विषय नहीं है, परन्तु सवका सुननेवाला है, वहीं अक्षर परमात्मा मनन इन्द्रिय का अविषय होते हुए भी सब का मनन करनेवाला है, हे गार्गि ! वही अन्तर्यामी आत्मा सब को अविज्ञात होते हुये भी सब का विज्ञाता है, हे गार्गि ! इससे पृथक् कोई दूसरा मनन करनेवाला नहीं है, हे गार्गि:। इससे पृथक् कोई दूसरा जाननेवाला नहीं है, हे गार्गि ! निश्चय करके इस अविनाशी परमात्मा में आकाश योत प्रोत है ।। ११ ॥ मन्त्रः १२ मन्येवं यदस्मानमस्कारेण मुच्येध्वं न वै जातु युष्मा- कमिमं कश्चिद्ब्रह्मोद्यं जेतेति ततो ह वाचक्नव्युपरराम ॥ इत्यष्टमं ब्राह्मणम् ॥८॥ पदच्छेदः। मन्यध्वम्, यत्, अस्मात्, नमस्कारेण, मुच्येध्वम्, न, वै, जातु, युष्माकम्, इमम् , कश्चित्, ब्रह्मोयम्, जेता, इति, ततः, ह, वाचक्नवी, उपरराम ।। अन्वय-पदार्थ। +सा-वह गार्गी । + हस्पष्ट । + उवाच-बोली कि । + भगवन्तः ब्राह्मणा:- हे मेरे पूज्य ब्राह्मणो ! । + तत् एव ग्रही ! + वहुबहुत । मन्येवम् मानने के योग्य हैं यानी कुशल समझना चाहिये । यत्-जो। अस्मात्-इस याज्ञवल्क्य से । नमस्कारेण नमस्कार करके । मुच्येध्वम्-श्रापलोग छुटकारा पाजावें । वैनिस्सन्देह । युष्माकम् अापलोगों में से । कश्चित् कोई भी । इमम् इस । ब्रह्मोद्यम् ब्रह्मवादी याज्ञवल्क्य
पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/३८९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।