२२ बृहदारण्यकोपनिषद् स० भवति, मृत्युः, एव, अप, पुनः, मृत्युम् , जयति, न, एनम् , मृत्युः, आप्नोति, मृत्युः, अस्य, आत्मा, भवति, एतासाम् , देवतानाम् , एकः, भवति ॥ अन्वय-पदार्थ। ला-वह प्रजापति । + इति-ऐसी । अकामयन-इच्छा करता भया कि । म मेरा । इदम्यह शरीर । मेध्यम्-यज्ञ के योग्य । स्तात्-हो।+ च और । अनेन इसी शरीर करके । आत्मन्वी-दूसरा शरीरवाला मैं । स्याम्-होऊँ । इति इस सोचने पर । यत्-जो । तत्-वह । अश्वत्-शरीर प्रजापति का फूल गया था । + तत्प्रवेशात्-उसी में प्रजापति के प्रवेश करने से । तत्-वह शरीर । मेध्यम्-पवित्र । अभूत् इति हो गया। ततः तिसके पीछे। सः वह प्रजापति स्वयं ही। अश्वा घोड़ा। अभवत् हो गया । + तत् एवम्वही । अश्वमेधस्य-अश्वमेध का । अश्वमेधत्वम् अश्वमेधत्व है यानी जो पहिले शरीर फूला और अपवित्र था वही पीछे से प्रजापति के प्रवेश करने से पवित्र हुधा इसलिये उसका नाम अश्वमेध पड़ा । यःजो उपासक । एवम् कहे हुए प्रकार । अश्वमेधम् अश्वमेध को । वेद- जानता है । एपःबह । वा हस्यवश्य ! + ज्ञाता-प्रश्वमेध का ज्ञाना ।+ भवति होता है । + च-और । यः जो । एवम् इस प्रकार एनम् इस प्रजापतिरूप अश्व को। चेद है । एयः यही । + अश्वमेधम् -अश्वमेध को भी । वेद- जानता है। + पुनः फिर । + सा वह प्रजापति । श्रमन्यत: इच्छा करता भया कि । तम्-उस छूटे हुए घोड़े को। अननु. रुध्य एव-विना किसी रुकावट के । संवत्सरम् भ्रामयामास- एक वर्ष तक फिराता भया।+च-और। संवत्सरस्य परस्तात्: एक वर्ष के पीछे । अात्मने-अपने लिये । तम्-उसी घोड़े जानता
पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/३८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।