अध्याय ३ ब्राह्मण ३६३ च और । भविष्यत् भविष्यत् । आचक्षते-कहते हैं। तत्- वह सब । कस्मिन्-किसमें । श्रोतम्-प्रोत । च-ौर । प्रोतम् इति-प्रोत है ऐसा प्रश्न किया। भावार्थ। तदनन्तर वह गार्गी पूछती है कि, हे याज्ञवल्क्य ! जो धुलोक के ऊपर है, जो पृथ्वीलोक के नीचे है, और जो धुलोक और पृथ्वी लोक के मध्य में है और जिसको लोक भूत, वर्तमान, भविष्यत् नाम करके कहते हैं, हे याज्ञवल्क्य! वह सब किसमें ओत प्रोत है, यानी किसके आश्रित है, यह मेरा प्रथम प्रश्न है, आप इसका उत्तर दें।॥ ३ ॥ मन्त्रः ४ स होवाच यदूर्व गार्गि दिवो यदवाक् पृथिव्या यदन्तरा द्यावापृथिवा इमे यद्भूतं च भवच्च भविष्यच्चे- त्याचक्षत आकाशे तदोतं च प्रोतं चेति ।। पदच्छेदः । स, ह, उवाच, यत्, ऊर्ध्वम् , गार्गि, दिवः, यत्, अवाक्, पृथिव्याः, यदन्तरा, यावापृथिवी, इमे, यत् , भूतम् , 'च, भवत् , च, भविष्यत् , च, इति, पाचक्षते, आकाशे, तत् , ओतम् , च, प्रोतम् , च, इति ॥ अन्वय-पदार्थ । सायह याज्ञवल्क्य । ह स्पष्ट । उवाच कहता भया कि । गार्गि-हे गार्गि ! । यत्-जो । दिवा धुलोक के । ऊर्ध्वम् ऊपर है । यत्जो । पृथिव्या:पृथ्वीलोक के। अवाक्-
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