अध्याय ३ ब्राह्मण ८ वही अश्रुत जानता है, जो वीर्य को जानता है, जिसका शरीर वार्य है, जो वीर्य के भीतर बाहर रह कर वीर्य को शासन करता है, वही अदृष्ट होता हुआ द्रष्टा है, होता हुआ श्रोता है, वही अमन्ता होता हुआ मनन करनेवाला है, और थविज्ञात होता हुआ विज्ञात है, वही आपका आत्मा है, वही अमृतस्वरूप है, इससे पृथक् और कोई द्रष्टा नहीं है, इससे पृथक् कोई दूसरा श्रोता नहीं है, इससे अन्य कोई मन्ता नहीं है, इससे अन्य कोई विज्ञाता नहीं है, यही तेरा अविनाशी आत्मा अन्तर्यामी है, इससे पृथक् और सब दुःख- रूप है, इसके पीछे अरुण का पुत्र उद्दालक चुप होता भया ॥ २३ ॥ इति सप्तमं ब्राह्मणम् ॥ ७ ॥ अथाष्टमं ब्राह्मणम्। 1 i अथ ह वाचक्नव्युवाच ब्राह्मणा भगवन्तो हन्ताह- मिमं द्वौ प्रश्नौ प्रक्ष्यामि तौ चेन्मे वच्यति न जातु युष्मा-: कमिमं कश्चिद्रह्मोचं जेतेति पृच्छ गार्गीति ॥ पदच्छेदः। अथ, ह, वाचक्नवी, उवाच, ब्राह्मणाः, भगवन्तः, हन्त, अहम् , इमम् , द्वौ, प्रश्नौ, प्रक्ष्यामि, तौ, चेत् , मे, वक्ष्यति, न, जातु, युप्माकम्, इमम् , कश्चित् , ब्रह्मोद्यम् , जेता, इति, पृच्छ, गार्गि, इति ।।
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