अध्याय ३ ब्राह्मण ७ अन्वय-पदार्थ । यः जो । दिविस्वर्ग में । तिष्ठन् स्थित है। +च- और । + यःमो। दिवास्वर्ग के । अन्तर:-बाहर है। यम्-जिसको। द्यौ-स्वर्ग । न-नहीं । वेद-जानता है । यस्य- जिसका । शरीरम् -शरीर । द्यौः स्वर्ग है । यःजो । अन्तरः-स्वर्ग में रहकर । दिवम् स्वर्ग को। यमयति- नियमबद्ध करता है। एषःबही। ते-तेरा। अमृतः अविनाशी। आत्मा-श्रास्मा। अन्तर्यामी-अन्तर्यामी है। भावार्थ । जो धुलोक में स्थित है, जो धुलोक के बाहर है, जिसको धुलोक नहीं जानता है, और जो धुलोक को जानता है, जिसका शरीर धुलोक है, और जो धुलोक के बाहर भीतर स्थित रहकर धुलोक को शासन करता है, और जो अवि- नाशी आपका आत्मा है, यही वह अन्तर्यामी है ॥ ८॥ मन्त्रः ६ य आदित्ये तिष्ठन्नादित्यादन्तरो यमादित्यो न वेद यस्यादित्यः शरीरं य आदित्यमन्तरो यमत्येष त आत्माऽन्तर्याम्यमृतः॥ पदच्छेदः। यः, आदित्ये, तिष्ठन्,' आदित्यात्, अन्तरः, यम्, आदित्यः, न, वेद, यस्य, आदित्यः, शरीरम् , यः, आदि- त्यम्, अन्तरः, यमयति, एषः, ते, आत्मा, अन्तर्यामी, अमृतः ॥
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