अध्याय ३ ब्राह्मण ७ एतत्-यह विज्ञान । एवम् एव-ऐसा ही है जैसा श्राप कहते है।+ अथ धब'। अन्तर्यामिणम् अन्तर्यामी को। हि। प्राप कहें। भावार्थ । याज्ञवल्क्य ने कहा है गौतम.! आप सुनें, मैं कहता हूँ, वायु ही वह सूत्र है, जिसको गन्धर्व ने आपसे कहा था; वायुरूप सूत्र करके ही कारण सहित यह दृश्यमान लोक, और आकाश विषे स्थित दृश्यादृश्य संपूर्ण लोक, प्राणी और पदार्थ जो उनके अन्दर हैं, अथित हैं, हे गौतम ! जब पुरुप मृत्यु को प्राप्त हो जाता है, तब उसके मृतक शरीर को देखकर मनुष्य कहते हैं कि इस पुरुष के सब अवयव ढीले पड़ गये हैं, जैसे माला में से सूत्र के निकल जाने पर उसके मणि इधर उधर गिर पड़ते हैं, इस उदाहरण से आपको मालूम हो सक्ता है कि वायुरूप सूत्र करके ही सब पदार्थ प्रथित है, ऐसा सुनकर गौतम उद्दालक कहते हैं कि, हे याज्ञवल्क्य ! यह विज्ञान ऐसा ही है जैसा आपने कहा है, हे याज्ञवल्क्य आप कृपा- करके अन्तर्यामी विषय के प्रश्न का उत्तर देवें ॥२॥ मन्त्रः ३ यः पृथिव्यां तिष्ठन्पृथिव्या अन्तरो यं पृथिवी न वेद यस्य पृथिवी शरीरं यः पृथिवीमन्तरो यमयत्येष त आत्माऽन्तर्याम्यमृतः ॥ पदच्छेदः। यः, पृथिव्याम् , तिष्ठन्, पृथिव्याः, अन्तरः, यम्, २२ .
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