पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/३४९

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अध्याय ३ ब्राह्मण ७ ३३५ , . कहा कि हे पतञ्चल ! जो विद्वान् उस सूत्र को और उस अन्तर्यामी पुरुष को अच्छी प्रकार जानता है वह ब्रह्मवित् भूः, भुवः, स्व:लोकवित्, वह अग्नि, सूर्य आदि देववित्, वह ऋक्, यजुः, साम, अथर्ववेदवित्, वह भूतवित्, वह आत्मवित्, वह सर्ववित् कहलाता है, यानी सबका ज्ञाता होता है । हे काप्य, पतञ्चल ! जब आप उस सूत्र को और अन्तर्यामी को नहीं जानते हैं तब अध्यापक वृत्ति कैसे करते हैं ? इस पर पतञ्चल और हमलोगों ने कहा, यदि श्राप उस सूत्र को और मन्तर्यामी को जानते हैं, तो हमारे लिये कहें, इसके उत्तर में उस गन्धर्व ने कहा मैं जानता हूं, फिर उस सूत्र और अन्तर्यामी का उपदेश हमलोगों से किया, हे याज्ञवल्क्य ! मैं उस गन्धर्व के उपदेश किये हुये विज्ञान को जानता हूं, यदि आप उस सूत्र और उस अन्तर्यामी को न जानते हुये ब्रह्मवेत्ता निमित्त आई हुई गौत्रों को उन ब्रह्म- वेत्ताओं का निरादर करके ले गये हैं तो आपका मस्तक अवश्य गिर जायगा। इसके उत्तर में याज्ञवल्क्य कहते हैं कि हे गौतम ! मैं उस सूत्र को और अन्तर्यामी को भली प्रकार जानता हूं, इस पर उद्दालक ऋपि कहते हैं कि ऐसा सबही कहते हैं, मैं जानता हूं, मैं जानता हूं, यदि आप जैसा जानते हैं तो वैसा कहें, अर्थात् गर्जने से क्या प्रयोजन है, यदि आप जानते हैं तो उस विषय को कहें ॥१॥ मन्त्रः २ स होवाच वायुर्वं गौतम तत्सूत्रं वायुना वै गौतम सूत्रेणायं लोकः परश्च सर्वाणि च भूतानि संदृब्धानि .