बृहदारण्यकोपनिषद् स० सबको । असृजत-उत्पन्न करता भया । पुनः फिर । ऋत्रः- ऋग्वेद । यषि यजुर्वेद । सामानि-सामवेद । छन्दांसि गायध्यादि छन्दों को । यज्ञान-यज्ञों को। प्रजाः प्रजात्रों को। पशून्-पशुओं को। + असृजत-उत्पन्न करता भया । साम्बह प्रजापति । यत्-जिस । यत्-जिसको । असृजत-उत्पन्न करता भया । तत्-उसी । तत्-उसी को । अत्तुम् खाने के लिये । अध्रियत इच्छा करता भया । + यत् कि । + मृत्युः मृत्यु । वे एव-अवश्य । सर्वम्-सबको । अत्तिखाता है । तत् = इसलिये । अदितेः अदिसिनामक मृत्यु का । अदितित्वम् अदितित्व । + प्रसिद्धम् प्रसिद्ध है । य:जी । एवम्-इस प्रकार । अदिते अदिति के । अदितित्वम्-अदितित्व को। वेद जानता है । सा=बह । सर्वस्य सब । एतस्य-इस जगत् का । अत्ता-अत्ता यानी भक्षण करनेवाला होता है। +च- और । सर्वम् अस्यान्नं भवति-पब ब्रह्मांड उसका भोग होता है 1 + हि-क्योंकि । + सर्वमात्मा सवका पृथक्-पृथक् धारमा । + तस्य एकः + अात्मा+भवति-उसका एक प्रारमा होता है। भावार्थ । हे सौम्य ! तत्पश्चात् उस भयभीत कुमार को देखकर मृत्यु यानी प्रजापति ने विचार किया कि अगर मैं खाने के ख्याल से इस कुमार को मार डालूँ, तो बहुत थोड़ा-सा आहार पाऊँगा, इसलिये वह मृत्युरूप प्रजापति वाणी और मन करके जो कुछ दृश्यमान यह जगत् है उसको उत्पन्न करता भया, और फिर ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, गायत्री छंदा- दिकों को, यज्ञों को, प्रजाओं को, पशुओं को उत्पन्न करता भया, और जिस जिसको उत्पन्न करता भया, उस उसको वह प्रजापति खाने की इच्छा करता भया, कारण इसका यह है कि मृत्यु !
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