पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/३१७

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अध्याय ३ ब्राह्मण २.. ३०३ मरता है तब उस मरे हुये पुरुप से सब इन्द्रियां वासना सहित ऊपर को जाती हैं या नहीं ? याज्ञवल्क्य ने उत्तर में कहा कि इन्द्रियां ऊपरं को नहीं जाती हैं उसी में लीन होजाती हैं, और वह. ज्ञानी आनन्दपूर्वक देह को त्यागता है, और सोया हुआ सा प्रतीत होता हैं ॥ ११ ॥ मन्त्रः १२ याज्ञवल्क्येति होवाच यत्रायं पुरुषो. म्रियते किमेनं न जहातीति नामेत्यनन्तं वै नामानन्ता विश्वेदेवा अनन्तमेव स तेन लोकं जयति ॥ पदच्छेदः। याज्ञवल्क्य, इति, ह, उवाच यत्र, अयम्, पुरुषः, म्रियते, किम् , एनम् , न, जहाति, इति, नाम, इति, अनन्तम् , वै, नाम; अनन्ताः, विश्वे, देवाः, अनन्तम्, एव, सः, तेन, लोकम् , जयति ॥ अन्वय-पदार्थ । + आतभाग:-श्रातभाग ने । इति इस प्रकार । उवाच: कहा कि । याज्ञवल्क्य हे याज्ञवल्क्य ! यत्र-जिस समय । अयम्-यह । पुरुषः ज्ञानी पुरुष । म्रियते-मरता है + तर्हि तब...किम्-कौनसा पदार्थ। एनम् इस विद्वान् को। नहीं। जहाति-त्यागता है । इति-ऐसा । + मम प्रश्ना=मेरा प्रश्न है ।+याज्ञवल्क्या-याज्ञवल्क्य ने । + उवाच-उत्तर: दिया कि । नाम-नाम I + न जहाति नहीं त्यांगता है। नाम: नाम । अनन्तम्-अनन्त है । विश्वेदेवाः-विश्वेदेव । अनन्ता: मनन्त हैं। तेन-तिस कारण । सावह पुरुष ।