अध्याय ३ ब्राह्मण १ २८७ मनुष्यलोक को । जयति-जीतता है । हिक्योंकि । अयम् यह । मनुष्यलोका-मनुष्यलोक । अधः नीचे स्थित है । भावार्थ 1 अश्वल फिर पुनः अश्वल प्रश्न करता है कि हे याज्ञवल्क्य ! आज यह अध्वर्यु कितनी आहुतियों को इस यज्ञ विषे देगा ? इसके उत्तर में याज्ञवल्क्य कहते हैं कि तीन आहुतियां, फिर अश्वल पूछता है वे तीन आहुतियां कौन कौन सी हैं ? याज्ञवल्क्य कहते हैं पहिली आहुति वे हैं जो अग्निकुण्ड में डालने पर ऊपर को प्रज्वलित होती हैं, दूसरी वे हैं जो अग्निकुएड में डालने पर अत्यन्त नाद करती हैं; तीसरी वे हैं जो अग्निकुण्ड में डालने पर नीचे को बैठती हैं, इन तीन आहुतियों के साथ ऊपर कही हुई तीन प्रकार की ऋचायें पढ़ी जाती हैं, तिस पर पूछता है कि हे याज्ञवल्क्य ! उन आहुतियों करके यनमान किस वस्तु को पाता है ! आप कहें । इस पर याज्ञवल्क्य समाधान करते हैं कि हे अश्वल ! जो आहुतियां ऊपर को प्रज्वलित होती हैं उन करके यजमान देवलोक को जय करता है, क्योंकि देवलोक प्रकाशवान् है, इस कारण देवलोक की प्राप्ति प्रज्वलित आहुतियों करके कही गई है, जो आहुतियां अति नाद करती हैं उन करके यजमान पितृलोक को जय करता है, क्योंकि पितृलोक में पितर लोग सुख के कारण उन्मत्त होकर नाद करते हैं, इस कारण पितृलोक की प्राप्ति नाद करती हुई आहुतियों करके कही गई है, जो आहुतियां नीचे को बैठती हैं, उन करके वह मनुष्यलोक को जय करता है, क्योंकि मनुष्यलोक नीचे
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