पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/२८०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२४८ बृहदारण्यकोपनिषद् स० तेजोमयः, अमृतमयः, पुरुषः, यः, च, अयम् , अध्यात्मम् , तैजसः, तेजोमयः, अमृतमयः, पुरुषः, अयम् , एव, सः, यः, अयम् , आत्मा, इदम् , अमृतम् , इदम् ,ब्रह्म, इदम् , सर्वम् ॥ अन्वय-पदार्थ। इयम्-यह । विद्युत्-बिजली । सर्वेपाम् सत्र । भूतानाम्- प्राणियों को । मधु-प्रिय है + च-और । अस्यै इस । विद्युतः बिजली को । सर्वाणिव । भूतानि-प्राणों । मधु-प्रिय हैं । च और । यःजो । अल्याम्-इस । विद्युति- बिजली में.। अयम् यह। तेजोमयः प्रकाश स्वरूप । अमृतमयः यमरधर्मी । पुरुषानुरुप है। चौर । यः-जो। अध्यात्मम्- शरीर में । अयम्-यह । तैजसा प्रघासम्बन्धी । तेजोमयः= प्रकाशरूप । अमृतमयः अमरधर्मी । पुरुषः पुरुष है । अयम् एक-यहा स्वचासम्बन्धी पुरुप निश्चय करके । सा-वह है यानी विद्युद्व्यापी पुरुष है । यःजो । अयम्= यही त्वचा सम्बन्धी । श्रात्मा-प्रारमा है । इदम् यही । अमृतम्-अमर है । इदम्- यही । ब्रह्मम्ब्रह्म है। इदम् यही । सर्वम्-सर्वशक्तिमान् है । भावार्थ । याज्ञवल्क्य महाराज मैत्रेयी देवी से कहते हैं कि हे देवि! ये वक्ष्यमाण बिजली सब प्राणियों को प्रिय है और इस बिजली को सब प्राणी प्रिय हैं, जब वर्षा काल बिषे काले बादलों में बिजली चमकती है तब सब को बड़ी प्रिय लगती है, जो वह सब के सामने बार बार प्रकाशित होती है उसी से मालूम होता है कि सब उसको अति प्रिय हैं, हे देवि ! जो प्रकाशस्वरूप, अमरधर्मी पुरुष इस बिजली विष है, वही प्रकाशस्वरूप, अमरधर्मी पुरुष इस शरीर की त्वचा में है,