अध्याय २ ब्राह्मण ५ २५३ . अयम्-यह । अध्यात्मम् शरीर में । धार्म: धर्मव्यापी । तेजोमयः प्रकाशस्वरूप । अमृतमयः अमरधर्मी। पुरुष-पुरुष है। याजो । अयम् यह। आत्मा-धर्मव्यापी प्रात्मा यानी पुरुप । इदम् -यही । अमृतम्-अमृतरूप है। इदम् यही । ब्रह्मन्ब्रह्मरूप है । इदम् यही । सर्वम्-सर्वशक्तिमान् है । भावार्थ । हे मैत्रेयि, देवि! यह श्रौत स्मार्त धर्म सब महाभूतों का सार है, अथवा सब प्राणियों को प्रिय है, और इस धर्म का सार.सब महाभूत हैं, अथवा इस धर्म को सब प्राणी प्रिथ हैं, और हे देवि ! जो इस धर्म में यह प्रकाशस्वरूप, अमर- धर्मी पुरुष है, यही वह है जो शरीर विषे धर्मव्यापी, तेजो- मय, अमृतमय पुरुष है, यानी दोनों एक ही हैं, इनमें कोई भेद नहीं है, और हे प्रिय मैत्रेयि ! जो यह धर्भ व्यापी शरीर विषे पुरुष है, यही अमृतरूप है, यही ब्रह्मरूप है, यही सर्व- शक्तिमान् है, यही तुम्हारा रूप है ॥ ११ ॥ . मन्त्र: १२ इद सत्य सर्वेषां भूतानां मध्वस्य सत्यस्य सर्वाणि भूतानि मधु यश्चायमस्मिन्सत्ये तेजोमयोऽमृतमयः पुरुषों यश्चायमध्यात्म सत्यस्तेजोमयोऽमृतमयः पुरुषोऽयमेव स योयमात्मेदममृतमिदं ब्रह्मदछ सर्वम् ।। पदच्छेदः। इदम् , सत्यम् , सर्वेषाम् , भूतानाम् , मधु, अस्य, सत्यस्य, सर्वाणि, भूतानि, मधु, यः, च, अयम् , अस्मिन् , सत्य, ते जोमयः, अमृतमयः, पुरुषः, य:,. च, श्रयम् , अध्यात्मम् , 7 ,
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