मन:-मन २३० बृहदारण्यकोपनिषद् स० रसी का । जिह्वा जीभ । एकायनम् एकायन है। एवम्-इसी प्रकार । सर्वेषाम्-सव । रूपाणाम् रूपों का । चक्षुः नेत्र । एकायनम्-एकायन है । एवम्-इसी प्रकार । सर्वेषाम् सब ! शम्दानाम्-शब्दों का । श्रोत्रम्-काना एकायनम्-एकायन है। एवम् इसी प्रकार । सर्वेषाम्सव । संकल्पानाम् संकल्पों का। । एकायनम्-एकायन है। एवम्-इसी प्रकार । सर्वासाम्-सब । विद्यानाम् ज्ञानों का । हृदयम्-हृदय । एकायनम् एकायन है। एवम्-इसी प्रकार । सर्वेषाम्-सव । कर्मणांम्= कर्मों का । हस्तौ दोनों हाथ । एकायनम् एकायन हैं । एवम् इसी प्रकार । सर्वपाम्-सव । आनन्दानाम्- श्रानन्दों का । उपस्थः-उपस्थ इन्द्रिय । एकायनम्-एकायन है। एवम्-इसी प्रकार । सर्वेषाम्-सब । विसर्गाणाम् त्यागों का। पायु-पायु इन्द्रिय । एकायनम् एकायन है । एवम्-इसी प्रकार । सर्वेषाम् सव । अध्वनाम्-मार्गों का । पादौ दोनों पाद। एकायनम् एकायन हैं । एवम्-इसी प्रकार । सर्वेषाम्-सब। वेदानाम् वेदों का। वाक्-वाणी । एकायनम् एकायन है। + तथा एच-उसी प्रकार । + अयम्-मह जीवात्मा + ल षाम्सवका । + एकायनम्-एकायन है। भावार्थ । हे सौम्य ! याज्ञवल्क्य महाराज फिर भी दृष्टान्त देकर मैत्रेयी महारानी को समझाते हैं, हे प्रिय मैत्रेयि ! जैसे सब जलों की स्थिति की एक जगह समुद्र है, जैसे सब स्यों के रहने की एक जगह त्वचा है, जैसे सब गन्धों के रहने की एक जगह दोनों नासिका हैं, जैसे सब रसों के रहने की एक जगह जिह्वा है, जैसे सब रूपों के रहने की एक -
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