पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/२४६

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बृहदारण्यकोपनिषद् स० ऐसा मत कहो। एतत् यह । + ब्रह्मवल। + न-नहीं है। + अयम् यह छायापुरुप । मृत्यु:-मृत्यु है । इति + मत्वा ऐसा मानकर। वै-नित्संदेह । अहम् मैं । एतम्-इसकी । उपाले- उपासना करता हूँ। च और । यःम्जो कोई। + अन्यः एव-घन्य भी। एतम्-इसका 1 एवम् उपास्ते इस प्रकार उपासना करता है। सःवह । ह-अवश्य । अस्मिन्-इस लोके-लो में । सर्वम्-चूर्ण । आयुः प्रायु को । एतिप्राप्त होता है । + च-और । मृत्युः मृत्यु ! कालात्-नियमित काल से । पुरा-पहिले । एनम्-इसके पास । न-नहीं । भाग- च्छति-पाती है। भावार्थ। हे सौम्य ! वह प्रसिद्ध गर्गगोत्रवाला बालाकी राजा से कहता भया कि जो यह छायापुरुष है, इसी को में ब्रह्म मानकर इसकी उपासना करता हूं. ऐसा सुन कर अजातशत्रु राजा ने जवाब दिया कि हे ब्राह्मण ! यह तुम क्या कहते हो, ऐसा मत कहो, यह ब्रह्म नहीं है, यह तो छायापुरुप मृत्यु है, क्योंकि जब उपासक को यह कटा कुटा दिखाई देता है तब उसी को अपने मरने का बोध होता है, इसको मैं ऐसा समझ कर इसकी उपासना करता हूं, जो कोई इसकी उपासना इस प्रकार समझ कर करता है, वह अवश्य इस लोक में पूर्ण थायु को प्राप्त होता है, और उसके निकट मृत्यु नियत काल से पहिले नहीं आती है ॥ १२॥ . . स होवाच गाग्यों य एवायमात्मनि पुरुप एतमेवा