बृहदारण्यकोपनिषद्:स० हैं उसी को पूर्व का समुद्र माना है, क्योंकि वह कटोरा पूर्व के तरफ रक्खा जाता है, और सूर्य भी पूर्व की तरफ निकलता है, घोड़े के पीछे का कटोरारूपी महिमा का स्थान पश्चिम का समुद्र माना है, क्योंकि यज्ञिय घोड़े का पिछला भाग पश्चिम तरफ़ होता है जहाँ कटोरा रक्खा गया है, वह जगह दूसरे कटोरारूपी महिमा की जगह है, जो समुद्र माना गया है, क्योंकि चंद्रमा पश्चिम दिशा में निकलता है, कटोरों का नाम महिमा रखने का कारण यह है कि ऐसा गौरव को पाया हुआ घोड़ा और घोड़ों से अति श्रेष्ठ होता है, जिस घोड़े पर देवता सवार होते हैं उसका नाम हय हैं, जिस घोड़े पर गंधर्व सवार होते हैं उसका नाम वाजी है, जिसपर असुर सवार होते हैं उसका नाम अर्थ है, और जिस पर मनुष्य सवार होते हैं उसका नाम अश्व है, और जो घोड़े के रहने और उत्पत्ति की जगह समुद्र कहा है उससे यह प्रकट किया गया है कि सबके उत्पत्ति का कारण जल ही है, यानी जल ही करके सबकी सृष्टि होती है, सो जल हिरण्यगर्भ से उत्पन्न हुआ है, इसी कारण उसकी श्रेष्टता है ॥२॥ इति प्रथमं ब्राह्मणम् ॥ १ ॥ अथ द्वितीयं ब्राह्मणम् । मन्त्रः? नैवेह किञ्चनाग्र आसीन्मृत्युनैवेदमावृतमासीत् अश- नाययाऽशनाया हि मृत्युस्तन्मनोऽकुरुतात्मन्ची स्यामिति
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