अध्याय १ वाहाण. ५. १०९ . प्राप्त होता है । कस्मात्-किस कारण । तान् वै । सर्वदा सदा । अद्यमानानि खाये जाने पर भी ।नम्नहीं । क्षीयन्ते नाश को प्राप्त होते हैं । इतिम्-इस विषय में। श्लोकाः प्रागे- वाले मंत्र प्रमाण हैं। भावार्थ । हे सौम्य ! जो सात प्रकार के अन्न हमारे पिता ब्रह्मदेव ने तप और बुद्धि करके उत्पन्न किये, उनमें से एक सबको साझे में दिया, दो अन्न देवताओं को दिया, और तीन अपने लिये रक्खा, केवल एक पशुओं के लिये दिया, जिसके आश्रय सब जीव हैं, चाहे वह श्वास लेते हों और चाह न लेते हों, प्रश्न उठता है कि किस कारण सब अन्न खाये जाने पर भी क्षीण नहीं होते हैं, उत्तर यही आता है कि सब अन्न परमात्मा से उत्पन्न हुये हैं, और चूंकि वह परमात्मा नाशरहित है इस कारण उससे उत्पन्न हुये अन्न भी नाशरहित हैं, जो ज्ञानी इन अन्नों को अविनाशी जान- कर खाता है, वह देवताओं की पदत्री को प्राप्त होता है और वही बल को भी प्राप्त होता है इस विषय में आगेवाले मंत्र प्रमाण हैं ॥१॥ यत्सप्लान्नानि मेधया तपसाऽजनयत्पितेति मेधया हि तपसाऽजनयत्पिता एकमस्य साधारणमितीदमेवास्य तत्साधारणमन्नं यदिदमद्यते स य एतदुपास्ते न स पाप्मनो ब्यावर्त्तते मिश्र, ह्येतद् द्वे देवानभाजयदिति हुतं च प्रहुतं च तस्माद्देवेभ्यो जुद्दति च म च जुइत्यथो
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