- १०६ बृहदारण्यकोपनिषद् स० कर्म को । करोति-बह करता है । + तस्मात् इसलिये । सः वही । एषः यह । यज्ञ: यज्ञ । पांक्तःपाँच पदार्थों से सिद्ध हुश्रा ।.पशुः पांक्ता यज्ञ पशु है । + सम्वही | + एपः यह । पांक्तः पाँच तत्व से बना हुश्रा । पुरुष-पुरुप है ! इदम् यह जगत् । सर्वम् सय । पांक्तम् पाँच नत्ववाला है। यःजो। एवम्-इस प्रकार । वेद-जानता है । यत् जो। किंच-कुछ । इदम्-यह है । तत्-उस । इदम्-इस । सर्वम्-सयको । आप्नोति प्राप्त होता है। भावार्थ। हे प्रियदर्शन ! विवाहविधि से पहिले केवल एक पुरुष था, वही ऐसी इच्छा करता भया कि कर्म करने के लिये मुझको स्त्री प्राप्त होवे. और मैं उस स्त्री से संतान की सूरत में उत्पन्न होऊँ, और फिर मेरे को गौ आदिक धन प्राप्त होवें, तिनकी सहायता करके मैं वेदविहित कर्म को करूँ, इन सबको प्राप्ति होने से मेरी. कामना पूर्ण हो जायगी, इस प्रकार इच्छा करता हुआ और नहीं इच्छा करता हुआ भी पुरुष इससे अधिक धन को नहीं पा सकता है, और यही कारण है कि आजकल भी वे व्याहा पुरुष चाहता है . कि मेरे को स्त्री प्राप्त होवे, तिसमें मैं पुत्ररूप से उत्पन्न होऊँ, फिर मेरे को गौ आदिक कर्म साधन द्रव्य प्राप्त होवे, ताकि मैं मुक्ति के साधन कर्म को करूँ, इस प्रकार जब तक इन कहे हुये पदार्थों में से एक एक को नहीं पा लेता है, तब तक वह समझता है कि मैं अपूर्ण हूँ, परन्तु हे सौम्प ! उसकी पूर्णता तब होती है जब वह मनोगत अभि- लाषा को प्राप्त होता है, और उसकी पूर्णता. तभी होगी .
पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/१२२
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।