पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/११९

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अध्याय १ ब्राह्मण ४ १०३ के घर पशुओं का आश्रय होता है, हे सौम्य ! उसी गृहस्थाश्रमी पुरुष में पशु, पक्षी चींटी तक सब अन्न पाकर जीते हैं, उसी करके वह पुरुष पशु, पक्षी आदिकों का आश्रय होता है, और जैसे हर एक पुरुष अपने देहप्रविष्ट जीवात्मा के अविनाशित्व को इच्छा करता है वैसे ही ऐसे उपा- सक के लिये भी सब प्राणी देवता आदिक उसके अवि. नाशिव को भी चाहते हैं, और सोई यह यज्ञादिकर्म वेद के पंचमहायज्ञ प्रकरण में कहा गया है, और वही यहाँ पर भी कर्तव्यरूप से विचार का विषय हुआ है ॥ १६ ॥ मन्त्रः १७ आत्मैवेदमग्र आसीदेक एवं सोऽकामयत जाया में स्यादथ प्रजायेयाथ वित्तं मे स्यादथ कर्म कुर्वीयेत्येता- वान्दै कामो नेच्छंश्च नातो भूयो विन्देत्तस्मादप्येतर्ये- काकी कामयते जाया मे स्यादथ प्रजायेयाथ विच मे स्यादथ कर्म कुर्वीयेति स यावदप्येतेषामेकैकं न मामोत्य- कृत्स्न एव तावन्मन्यते तस्योऽकृत्स्नता मन एवा- स्याऽऽत्मा वाग्जाया प्राणः प्रजा चक्षुर्मानुपं वित्तं चक्षुषा हि तद्विन्दते श्रोत्रं देवछ श्रोत्रेण हि तच्छृणोत्यात्मैवास्थ कर्माऽऽत्मना हि कर्म करोति स एप पक्तिो यज्ञः पक्तिः पगुः पतिः पुरुपः पक्तिमिदछ सर्व यदिदं किंच तदिदछ सर्वमानोति य एवं वेद ॥ इति चतुर्थ ब्राह्मणम् ।। पदच्छेदः। आत्मा, एच, इदम् , अंग्रे, आसीत्, एकः, एव, सः, ..