बुद्ध और बौद्ध-धर्म किया । उसने गान्धार और काश्मीर में, मिस्र में, राजपूताने में. पच्छिमी पंजाब में, वैक्टोरिया और यूनान में, मध्य-हिमालय के प्रान्तों में, वर्मा और लंका में,धार्मिक उपदेशकों को भेजा। इसकी आज्ञाओं का पालन चोल, पाण्य, करल, लंका और सीरिया के यूनानी राजा एन्टी ओकस के राज्यों में किया गया । सूचनापत्रों से पता चलता है कि उसने यूनानी राज्यों में अर्थात सीरिया, ईजिप्ट, मेसेडेन, एपेरस और सिरिया में भी दूत भेजे थे। जिस समय प्रतापी अशोक भारत पर एकछत्र राज्य कर रहा था, उस समय लंका पर तिष्य नामक राजा का राज्य था। उसने अशोक के धर्म-भाव की कीर्ति को सुनकर मित्रता का सन्देश भेजा और अशोक ने राजा से मैत्री सम्वाद पाकर अपने पुत्र महेन्द्र और कन्या संघमित्रा को लंका भेजा, और इस महाराज कुमार ने वहाँ जाकर प्रथम राजा को और फिर समस्त लंका को वौद्ध- धर्म में दीक्षित किया। लंका में, अबतक महेन्द्र के स्मृतिचिन्ह हैं। अनिरुद्धपुर के उजड़े हुए, और प्राचीन नगर से आठ मील की दूरी पर महिन्तल का पहाड़ है, जहाँ पर वहाँ के राजा ने महेन्द्र के लिए एक मठ वनवाया था। आज भी वहाँ लोग पवित्र भाव से जाते हैं और चट्टानों और गुफाओं को, जिसमें कि वह त्यागी राजकुमार जीवन- भर रहा और जो दो हजार वर्ष बीत जाने पर भी वैसी ही प्रभाव- शाली हैं, देखकर श्रद्धा से सिर झुकाते हैं। महेन्द्र की मृत्यु के पश्चात् ड्रेविडियन लोगों ने लता पर दो "
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