६६ बौद्ध-संघ के भेद ने इसको ग्रहण किया, तब यह वह समय था कि जब रोमन साम्राज्य और रोमन सभ्यता समस्त यूरोप में प्रधान मानी जाती थी, लेकिन फिर भी समस्त पश्चिमी यूरोप में बड़ी तेजी से ईसाई-धर्म फैल गया। इसी प्रकार मुसलमान धर्म का प्रचार भी उसी समय हुआ कि जिस समय संसार में उसका विरोध करनेवाला कोई धर्म न था । इस समय तक यूरोप में सैनिक-राज्य नहीं स्थापित हुए थे। भारतवर्ष में भी जब आर्य पंजाब से नीचे उत्तरे और समस्त भारत के भागों को विजय करना शुरू कर दिया तो इसके पश्चात् उनकी हिन्दू-सभ्यता का प्रचार हुआ। बौद्ध-धर्म के प्रचार में भी एक विशेपता थी। वौद्ध-धर्म में सबसे बड़ी बात यह थी-ब्राह्मणों में और नीच जाति में कोई भेद नहीं माना गया था, जोकि तत्कालीन हिन्दू-धर्म का सबसे मुख्य सिद्धान्त था । इसलिए बौद्ध-धर्म का प्रारम्भिक विकास मगध राज्य में हुआ, चूँकि मगध का राज्य शूद्र वंश में बहुत समय तक रहा । पंजाब और उत्तर-भारत में जहांकि आर्यों की बस्ती थी, बौद्ध-धर्म बहुत सुस्ती से फैला । लेकिन आगे चलकर ईसा के पूर्व तीसरी शताब्दि में, जब मगध राज्य ने समस्त भारत में सावभौम शक्ति प्राप्त कर ली, तब बौद्ध-धर्म भी भारत का सार्व- भौम धर्म होगया। शिशुनाग वंश जिसमें बिम्बसार और अजात- शत्रु पैदा हुए थे, ईसा से ३७० वर्ष पूर्व ही नष्ट हो चुका था। इसके पश्चात् नन्द का राज्य हुआ और उसे मारकर चन्द्रगुप्त ने ईसा के लगभग ३२० वर्ष पूर्व मगध की गद्दी को अपने अधिकार
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