बुद्ध और बौद्ध-धर्म वह अपने प्राचार्य को अपने पिता के समान समझे । इस प्रकार वे परस्पर एक दूसरे का आदर करते हुए धर्म की उन्नति करें। मिक्ष अपने आचार्य की सेवा एक दास की भांति करते थे। वे उनके लिए भोजन आदि लाते, मकान साफ कर रखते और उनके कपड़े धोते थे। आचार्य भी उनका पूरी तरह से खयाल रखते थे। वे उन्हें अच्छी तरह ग्रन्थों का अध्ययन कराते थे और बीमार हो जाने पर उनकी देखभाल करते और उन्हें दवादारू देते थे। जब कोई आचार्य मर जाता, गृहस्थी में वापिस लौट जाता, अथवा अन्य धर्म में चला जाता, तो भिक्षुओं को अपना नया आचार्य चुनना पड़ता था। दस वर्ष के पश्चात् मित, संघ का एक अंग बन जाता था, वह छोटी-से-छोटी बात में संघ के नियमों के अनुसार अपनी प्रवृत्ति करता था और वह यदि इसमें जरा भी त्रुटि करता तो उसे दण्ड दिया जाता था। भिक्ष तीन कपड़े पहन सकते थे जोकि तृचीवर कहलाते थे। ये कपड़े भगवाँ होते थे। एक कपड़े को अन्तरवासक कहते थे, जोकि पहनने के काम में आता था, दूसरा कपड़ा उत्तरासंग कहलाता था जोकि दुपट्टे की तरह ओढ़ने के काम में आता था; तीसरा कपड़ा संगाठी कहलाता था, जोकि छाती के चारों तरफ़ लपेटा जाता था। वह एक तरह के लवादे की तरह होता था, वह कमर में एक रस्सी से बंधा रहता था। गृहस्थी-बौद्ध बौद्ध-भिन्नुओं को वन बॉटना एक बड़े भारी
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