बुद्ध और बौद्ध-धर्म 10 पाँच शताब्दि पहले इस श्रेष्ठ हिन्दू-आचार्य ने यह शिक्षाएं प्रकट की थीं- "घृणा कभी घृणा करने से बंद नहीं होती। घृणा प्रीति से बंद होती है, यही इसका स्वभाव है।" "हम लोगों को प्रसन्नतापूर्वक रहना चाहिए और उन लोगों से घृणा नहीं करनी चाहिए जो हमसे घृणा करते हों। जो लोग हमसे घृणा करते हों उनके बीच में हमें घृणा से रहित होकर रहना चाहिए "क्रोध को प्रीति से और बुराई को भलाई से विजय करना चाहिए । लालच को उदारता से और झूठ को सत्य से जीतना चाहिए।" ये बड़ी शिक्षाएं गौतम के सुशील और पवित्र आत्मा शिष्यों के लिए कही गई हैं। हम उनमें से एक कथा को संक्षेप में लिखेंगे। अपने अनुयाइयों में झगड़ों और भेद-भाव को रोकने के लिए गौतम कहता है:- "हे भिक्षुओ! प्राचीन समय में बनारस में काशियों का एक राजा ब्रह्मदत्त रहता था। उसकी मालगुजारी बहुत अधिक थी, और वह एक बड़े देश का स्वामी था। उसके कोश और भण्डार पूर्ण थे। उसी समय कौशलों का राजा दीर्घकीर्ति था, जो धनाढ्य नहीं था। उसका कोश और मालगुजारी बहुत थोड़ी थी। उसके पास छोटी-सी सेना और थोड़े-से रथ थे। बह एक छोटे-से देश
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