४६ बुद्ध की श्राचार-सम्बन्धी आशाएं उपर्युक्त बातों से हमें हिन्दू-जीवन का आनन्दमय गृहस्थ- सम्बन्धी तथा सामाजिक विचारों और कर्तव्यों का कैसा चित्र मिलता है। अपने बच्चों को शिक्षा, धार्मिक-शिक्षा और सांसारिक सुख देने के लिए माता-पिता की उत्सुक भावना ; अपने माता- पिता को पालन करने, उनका सत्कार करने और मृत्यु के उपरान्त आदर-पूर्वक उनका स्मरण करने के लिए पुत्र की भक्ति-पूर्ण अभिलाषा: शिष्य का अपने गुरु के प्रति सत्कार का व्यवहार, और गुरु की शिष्य के लिए उत्कट चिन्ता तथा प्रीति; पति का अपनी पत्नी के साथ सत्कार, दया, मान और प्रीति के साथ व्यवहार, जो हिन्दु-धर्म में सदैव से चला आया है। और हिन्दू पलियों की अपनी गृहस्थी के कामों में सचाई और चौकसी, जिसके लिए वह सदा से प्रसिद्ध हैं। मित्रों मित्रों में, स्वामी और नौकर में, गृहस्थों और धार्मिकों के बीच जो दया के भाव रखने का उपदेश दिया गया है वह सब सर्वोत्तम शिक्षाए हैं, जिन्हें हिन्दू-धर्म ने दिया है ये सर्वोत्तम कथायें हैं जिन्हें हिन्दू-धर्म ने हजारों वर्षों तक निरन्तर बताया है। बौद्ध-धर्म ने इन सम्पूर्ण बातों को प्राचीन हिन्दू-धर्म से गृहण किया है और अपने धर्म- प्रन्थों में सुरक्षित रक्खा है। अब हम गौतम की कर्तव्य विषयक आज्ञाओं को छोड़कर उन आज्ञाओं और परोपकारी कहावतों का वर्णन करेंगे, जिनके कारण बौद्ध-धर्म ने संसार में उचित प्रसिद्धि पाई है।गौतम का धर्म परोपकार और प्रीति का धर्म है और ईसामसीह के जन्मकाल के
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