बुद्ध की श्राचार-सम्बन्धी आज्ञाएं सूत्र में दिया गया है, जिसे उत्तरी तथा दक्षिणी दोनों बौद्ध मानते हैं। और जिसका अनुवाद यूरोप की भाषाओं में कई बार हुआ है। उन धर्मों के वर्णन से हिन्दू-समाज की अवस्था तथा हिन्दुओं के सामाजिक जीवन के आदर्श का इतना स्पष्ट यथार्थज्ञान होता है कि हमें उसके उद्धृ त करने में कोई रुकावट नहीं होती:- १-माता-पिता और लड़के माता-पिता को चाहिए कि- (१) लड़कों को पाप से बचावें। (२) पुण्य-कार्य करने की शिक्षा दें। (३) उन्हें शिल्प और शास्त्रों में शिक्षा दिलावें। (४) उनके लिए योग्य पति वा पत्नी दें। (५) उन्हें पैत्रिक अधिकार दें। लड़कों को चाहिए कि- (१)जिन्होंने मेरा पालन किया है, उनकामैं पालन करूँगा। (२) मैं गृहस्थी के उन धर्मों का पालन करूँगा जो मेरे लिए आवश्यक हैं। (३) मैं उनकी सम्पत्ति की रक्षा करूँगा। (४) मैं अपने को उनके वारिस होने के योग्य बनाऊँगा। (५) उनकी मृत्यु उपरान्त मैं सत्कार से उनका ध्यान करूँगा। २--गुरु और शिष्य शिष्य को अपने गुरुओं का सत्कार करना चाहिए- (१) उनके सामने उठकर।
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