बुद्ध की प्राचार-सम्बन्धी प्राज्ञाएं सभा में की हो और उसको न दी गई हो। ऐसी वस्तु उसे दूसरों को भी नहीं लेने देनी चाहिए और जो लोग ऐसी चीज को लेते हो उनकी सराहना नहीं करनी चाहिए | उसे सब चोरी का त्याग करना चाहिए।" "बुद्धिमान मनुष्य को व्यभिचार का त्याग जलते हुए कोयले की तरह करना चाहिए। यदि वह इन्द्रियों का निग्रह न कर सके तो उसे दूसरे की स्त्री के साथ व्यभिचार न करना चाहिए।" "किसी मनुष्य को न्याय-सभा या और किसी ज्यादा न बोलना चाहिए । उसे न दूसरे से झूठ बुलवाना चाहिए और न झूठ बोलने वाले को सराहना ही चाहिए | उसे सब प्रकार से असत्य का त्याग करना चाहिए।" "जो ग्रहस्थ इस धर्म को मानता है; उसे नशीली चीजें नहीं पीनी चाहिए, न दूसरों को पिलानी चाहिए । और जो पोते हों उन्हें यह जानकर न सराहना चाहिए, ऐसा करना पागलपन है। ये पांचों आज्ञाएं जो पंचशील के नाम से प्रसिद्ध हैं, सब बौद्धों गृहस्थों और भिक्षुओं के लिए हैं । वह संक्षेप में इस प्रकार हैं- (१) कोई किसी जीव को न मारे । (२) जो वस्तु न दी गई हो उसे न ले। (३) भूठ न बोलना चाहिए। (४) नशे की वस्तु नहीं पीनी चाहिए। (५) व्यभिचार नहीं करना चाहिए। तीन नियम और दिये गए हैं जो अत्यावश्यक माने गए हैं।
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