बुद्ध और बौद्ध-धर्म वह नहीं जानता कि मृत्यु के उपरान्त उसका क्या होगा। इसलिए हे मलुक्यपुत्र! जो कुछ मैंने प्रकट नहीं किया, उसे अप्रकट रहने दो और जो कुछ मैंने प्रकट किया है उसे जानो। एक बार कौसलों के राजा प्रसेनजित साकेत से श्रावस्ती की यात्रा में क्षेमा मिक्षणी से मिले, जोकि अपनी बुद्धि के लिए बहुत प्रसिद्ध थी। राजा ने सत्कारपूर्वक उससे पूछा-हे पूज्यादेवि ! क्या पूर्ण बुद्ध मृत्यु के उपरान्त रहता है ? उसने उत्तर दिया- "बुद्ध ने यह प्रकट नहीं किया ! राजा ने फिर पूछा-"क्या पूर्ण बुद्ध मृत्यु के उपरान्त नहीं रहता? उसने उत्तर दिया-"महाराज!यह भीबुद्धने प्रकट नहीं किया।" इन उद्धरणों से मालूम होता है कि गौतम ने निर्वाण के बाद और.बातों को प्रकट नहीं किया, लेकिन उसका उद्देश्य प्रकट है कि वह मनुष्य को दुःखों से बचाने के लिए, संसार में पवित्र जीवन व्यतीत करने के लिए, और पूर्ण पाप-रहित अवस्था में रहने के लिए उत्तेजित करता है, और वह उसीको निर्वाण कहता है। उसका यह भी कहना है कि अगर कोई मनुष्य निर्वाण प्राप्त नहीं कर सकता तो उसका अवश्य ही पुनर्जन्म होगा । लेकिन इसमें भी एक बहुत महत्वपूर्ण बात है । बुद्ध पुनर्जन्म को तो स्वीकार करता है, लेकिन वह आत्मा के सिद्धान्त को नहीं मानता; परन्तु बात यह है कि यदि आत्मा ही नहीं है तो फिर पुनर्जन्म किसका होता है। इस सम्बन्ध में कर्म-सम्बन्धी बौद्ध
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