बुद्ध के धार्मिक और दार्शनिक सिद्धान्त बौद्धों का स्वर्ग मृत्यु नहीं है और त्रपिटक में परमानन्द की जिन अवस्थाओं का वर्णन है, वह मृत्यु के उपरान्त नहीं; किन्तु यहीं त्याग-पूर्ण जीवन व्यतीत करने से मिल जाती है। परन्तु अब एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि जिन लोगों ने निर्वाण प्राप्त कर लिया है, उनके लिए इस जीवन में सिवा धार्मिक जीवन व्यतीत करने के भविष्य में क्या कोई नया सुख और कर्म नहीं है? गौतम ने इस विषय में संदिग्ध उत्तर दिये हैं। वह घूम-फिर कर यही बात बताता है कि बुद्ध के लिए निर्वाण के अतिरिक्त और कोई चीज नहीं है, वही स्वर्ग और वही मुक्ति है। मलुक्यपुत्र ने गौतम से इस बात पर विचार प्रकट करवाना चाहा और यह जानना चाहा कि पूर्ण-बुद्ध मृत्यु के उपरान्त रहते हैं या नहीं? गौतम ने उसे उत्तर दिया-हे मलुक्यपुत्र ! भिक्षु होने के समय क्या मैंने तुमसे यह कहा था कि तुम मेरे शिष्य बनो, मैं तुम्हें इस बात का उत्तर दूंगा? मलुक्यपुत्र ने कहा--"यह आपने नहीं कहा था ? गौतम ने कहा-तब इस प्रश्न के उत्तर के लिए अनुरोध न करो। यदि कोई मनुष्य जिसके विषैला बाण लग गया हो, यह कहे कि मैं अपने घाव को अच्छा नहीं होने दूंगा, जबतक कि मुझे यह मालूम न हो जाय कि मुझे जिसने मारा है, वह ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अथवा शूद्र है तो निस्सन्देह वह मर जायगा; क्योंकि
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