पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/२९६

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३०६ नालन्दा विश्वविद्यालय के निदर्शन में तो ये अद्वितीय हैं, अर्थात् कला का वास्तविक उद्देश्य-"हृदय में लोकोत्तर आनन्द का उद्बोधन" इनके द्वारा पूर्णतः सिद्ध होता है। कूप और जलाशय हुएनत्संग ने नालन्दा के एक विशाल कूप का वर्णन किया है। खुदाई में भी एक अठमहला सुन्दर कुआँ मिला है। इस कुएँ को देखकर हम इसका जल पीने का लोभ सँवरण न कर सके। वास्तव में जल सुस्वादु और निर्मल है । कई प्राचीन जलाशय अब भी यहाँ की शोभा बढ़ा रहे हैं। एक तालाब तो ऐसा है, जिसमें स्नान करने से लोगों का ऐसा ही विश्वास है कि कुष्ठ रोग दूर हो जात है। कम-से-कम एक ऐसे सज्जन को तो हम स्वयं जानते हैं, जिन का बढ़ा हुआ कुष्ठ रोग केवल इस तालाब में नित्य स्नान करने से छूट गया । शरद् ऋतु में ये जलाशय विकसित कमलों से विभूषित होकर अत्यन्त मनोहर देख पड़ते हैं। प्रहार और संहार नालन्दा के संघारामों को देखने से जान पड़ता है कि उन पर हृदयहीन शत्रुओं के अनेक प्रहार हुए थे । कुछ मन्दिर और आवास प्राचीन भन्नावशेषों के ऊपर बने मालूम होते हैं । नालन्द महाविहार पर प्रथम आघात सम्भवतः बालादित्य (नरसिंह गुप्त) के शत्रु "मिहिरकुल" का हुआ होगा । बालादित्य-राज ने इमारतों की फिर मरम्मत करा दी होगी । दूसरा प्रहार 'शशांक' का हुआ होगा । इस वार मरम्मत हर्षवर्धन ने कराई होगी।