बुद्ध और बौद्ध-धर्म ऊपर कहा जा चुका है कि नालन्दा में किस प्रकार एक के बाद दूसरे राजा संघारामों का निर्माण कराते रहते थे। हुएनत्संग ने यहाँ के संघारामों और कुछ बिहारों का वर्णन किया है। यहाँ का एक बिहार तो तीन सौ फीट ऊंचा था, यह बहुत विशाल था। हुएनत्संग लिखता है-"इसको सुन्दरता, विस्तार और इसके भीतर बुद्धदेव की मूर्ति आदि सब बातें ठीक वैसी ही हैं, जैसे बोधिवृक्ष के नीचे वाले बिहार में हैं। बुद्धभद्र का निवास-भवन, जिसमें हुएनत्संग ठहरा था, चार खण्ड का था। इन विशाल एवं मनोहर मन्दिरों की प्रशंसा में हुएनत्संग के जीवनी-लेखक हुई-ली ने लिखा है-"समलंकृत शिखर तथा सुत्रमापूर्ण अट्टालिकायें उत्तुंग गिर-शृङ्गों की तरह परस्पर सम्मिलित हैं। बेधशालायें प्रातःकालीन वाष्प में लुप्त-सी जान पड़ती हैं और ऊपर के कमरे बादलों से भी ऊँचे जान पड़ते हैं। खिड़कियों से यह देखा जा सकता है कि हवा और मेघ किस प्रकार नये आकारों की सृष्टि करते हैं । गगनचुंबी वलभियों के ऊपर सूर्य-चन्द्र ग्रहण का स्पष्ट निरीक्षण किया जा सकता है। गहरे और निर्मल जलाशय लाल और नीले कमलों को बड़ी सुन्दरता से धारण किये हुए हैं । बीच-बीच में उन पर विस्तीर्ण अमराइयों की बड़ी सुन्दर छाया पड़ती है। बाहर के सभी चैत्य, जिनमें भिक्षुकों के आवास हैं, चार खण्ड के हैं। सीढ़ियों के सर्पा- कार झुकाव, छत्तों के सुसज्जित छोर, खम्भों की नफीस नाशी, वेदिकाओं ( Railings) की मनोहर पंक्तियाँ, खपरैल छतों के
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