बुद्ध और बौद्ध-धर्म २८६ जन्म-स्थान 'नाल' ग्राम था। कुछ विद्वानों का खयाल है कि 'नाल' नालन्दा का ही द्योतक है। यहीं बुद्धदेव से सारिपुत्त की भेंट हुई और भगवान् ने अपने प्रिय शिष्य की कठिनाइयों का समाधान किया । तिव्वती लामा तारानाथ के अनुसार यहीं सारिपुत्र ने अस्सी हजार अर्हतों के साथ निर्वाण प्राप्त किया । बड़गाँव में, हाल की खुदाई में, भूमि-स्पर्श मुद्रा में, भगवान बुद्ध की एक मूर्ति मिली है, जिसमें आर्य सारिपुत्त और आर्य मौदगल्यायन उड़ते हुए रूप में चित्रित हैं । ये दोनों भगवान बुद्ध के प्रधान शिष्य थे। इन पवित्र संसर्गों के कारण नालन्दा बहुत प्राचीन समय से पुण्यस्थान माना जाता था। इसके अतिरिक्त यह 'राजगृह' से बहुत निकट है, जो बौद्धों का प्राचीन और प्रसिद्ध तीर्थ-स्थान है। मगध की राज- धानी पाटलिपुत्र भी इस स्थान से बहुत दूर नहीं है। यहाँ की प्राकृतिक शोभा और शान्ति भो बड़ी चित्ताकर्पिणी थी। इस स्थान की इन्हीं विशेषताओं से आकृष्ट होकर एक महान. उच्च आदर्श को लिए हुए आत्मवती वौद्ध भिक्षुकों ने यहाँ नालन्दा महाबिहार की स्थापना की थी। महाविहार की स्थापना का काल निर्णय परन्तु यह स्थापना कब हुई है, इस सम्बन्ध में मत भेद है। वारानाथ के अनुसार इसके सर्व प्रथम स्थापक अशोक थे। हुएन- त्संग ने भी लिखा है कि 'बुद्ध-निर्वाण के थोड़े ही दिन बाद यहाँ के प्रथम संधाराम का निर्माण हुआ, पर नालन्दा महाबिहार की इतनी अधिक प्राचीनता का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं
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