बुद्ध और बौद्धधर्म २८४ बहुत पहले से 'बड़गाँव' के ही प्राचीन नालन्दा' होने का विश्वास प्रचलित था। विक्रम सम्बत् १५६५ में रचित इंससोम के 'पूर्व- देशचैत्य परिपाटी' ग्रन्थ में नालन्दा के साथ उसके वर्तमान नाम 'बड़गाँव' का भी उल्लेख है। लिखा है- "नालन्दे पा. चौद चौमास सुणीजै । होड़ा .लोक-प्रसिद्ध से बड़गाँव कहीजै । सोल प्रसाद तिहाँ अच्छे जिन विम्ब नमीजें । इस प्रकार यह प्रकट है कि विक्रम की सोलहवीं शताब्दि से भी पहले लोगों को यह मालूम था कि यह बड़गाँव उस प्राचीन "नालन्दा का ही वर्तमान रूप है। प्राचीन नालन्दा की स्थिति वे मूले न थे, फिर भी इसमें सन्देह नहीं कि नानन्द में यदि खुदाई का काम जारी हो तो उससे हमारे नालंदा विषयक ज्ञान में अत्यन्त महत्वपूर्ण सत्य का विकास होगा। नालन्दा का उल्लेख कई चौद्ध- ग्रंथों में भी हुआ है। शान्त-रक्षित का तत्व-संग्रह' कमलशील की 'तत्त्रसंग्रह पंजिका' तथा नालन्दा के पण्डितों के और भी कई तान्त्रिक ग्रन्थ मिलते हैं। नालंदा के वर्णन में उनसे विशेष सहायता नहीं मिलती। केवल 'अष्ट-साहसिका प्रज्ञापारमिता' और कुछ अन्य प्राचीन ग्रंथ जिनकी प्रतिलिपि पालवंशी राजाओं के समय में तैयार की गई थी-ऐसे हैं जिनसे कुछ विशेष सुचनायें मिलती हैं। पालिग्रन्थ महाविहार की स्थापना के बहुत पहले की बातों का उल्लेख करते हैं। जब इस स्थान का सम्बन्ध स्वयं भगवान बुद्ध से था। इस सम्बन्ध में
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