२८३ नालन्दा विश्व-सिद्यालय कुछ जाँच-पड़ताल भी की है। आपका तो यह अनुमान है कि यथार्थ में 'नानन्द' ही असल 'नालन्दा' है। 'बड़गाँव' तो नालंदा हो ही नहीं सकता। 'बड़गाँव' जिसकी व्युत्पत्ति ब्राण्डले साहब ने बिहार ग्राम से बतलाई है, स्कन्दगुप्त द्वारा स्थापित बिहार ग्राम है। यहाँ के संघारामों के संस्थापक वही होंगे। किन्तु यह अभी अनुमान-ही-अनुमान है । इस सम्बन्ध में जो कुछ सामग्री मिल सकी है, वह वोट साहब के पास जाँच के लिये भेजी गई है। देखें, वे किस निर्णय पर पहुँचते हैं । असल में जब तक इस भाग में खुदाई न हो, तब तक निश्चयात्मक रूप से कुछ कहना सम्भव नहीं है। जो हो, नानन्द के नालन्दा' होने की सम्भावनायें विश्वास रखते हुए भी हम यह मानने को तैयार नहीं कि बड़गाँव नालन्दा है ही नहीं। हम यह जानते हैं कि 'नालन्दा' महाबिहार में दस हजार विद्यार्थियों के रहने का प्रबन्ध था। यह सम्भव नहीं कि इतने अधिक विद्यार्थियों के रहने का स्थान, एक-डेढ़ मील में ही सीमित हो । उसके लिये चार-पाँच मील या इससे भी अधिक विस्तार का होना सम्भव है। इस प्रकार यदि निश्चयात्मक रूप से भी यह मान लिया जाय कि 'नानन्द' में ही 'नालन्दा' बसा हुआ था, तो भी उसके विस्तार का बड़गाँव' तक पहुँचना असम्भव नहीं हो सकता । नालन्दा, असल में, बहुत विस्तृत प्रदेश था। और 'बड़गाँव' निस्सन्देह उसका एक अन्तस्थ भाग था। इसमें भ्रम या तर्क की कोई गुंजायश नहीं। इसके अनेक प्रमाणों में सबसे बड़ा प्रमाण तो यह है कि कनिंघम साहब की खोज के
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