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बुद्ध के धार्मिक और दार्शनिक सिद्धांत इस अमर और महान पुरुप ने ८२ वर्ष की अवस्था तक जिन सिद्धान्तों और तकों के द्वारा ब्राह्मण-धर्म की प्रबल कट्टरता का विध्वंस किया था, उनपर हमें गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। यह विपय भाजकल के विद्वानों के लिए खोज और अध्ययन का विषय है, और इसपर पूर्ण प्रकाश डालना हमारे लिए अशक्य है। परंतु हम केवल स्थूल विषयों का उल्लेख करेंगे। विचारणीय यात यह है कि इस धर्म का सारांश एक प्रकार की आत्मोन्नति और आत्म-निरोध है। इस मत में सिद्धान्त और विश्वास गौण हैं। क्षोभ और कामनाओं से रहित पवित्र-जीवन निर्वाह करने से मनुष्यों के दुःखों के दूर होने की संभावना है। यह दुःखवाद ही बौद्ध-सिद्धान्त है। यह सिद्धान्त इस प्रकार है- १-आर्य सत्य चतुष्टय (ख)-दुःख का हेतु। (ग)-दुःख का निरोध। (घ)-दुःख-निरोध का उपाय।