२८२ नालन्दा विश्वविद्यालय बीसवीं विक्रमीय शताब्दि के प्रारंभिक काल में इसके कुछ प्राचीन चिह्नों के दर्शन हुर। ज्योंही प्रसिद्ध चीनी गत्री हुएनत्संग की यात्राओं का विवरण प्रकाशित हुआ, त्योंही विद्वानों को इसके महत्व का अनुभव हुआ। विक्रम सम्बत १६१८-१६ में कनिंघम साहब की खोज के प्रभाव सोमालूम हुआ कि जहाँ इस समय पटना जिले का बड़गाँव' नामक ग्राम है, वहीं प्राचीन नालन्दा वसा हुआ था। फिर क्या था, वहाँ चीन, जापान, तिब्बत, वर्मा, सिंहल आदि देशों के तीर्थयात्री आने लगे। इसके बाद ही लन्दन की 'रायल एशियाटिक सोसाइटी' ने हिन्दुस्तान के पुरातत्व विभाग द्वारा 'बड़गाँव' में खुदाई का प्रबन्ध कराया और प्रान्तीय संग्रहालय में वहाँ से प्राप्त हुई सभी चीजों को सुरक्षित रखने की अनुमति दी । सम्वत् १९७२ में यहाँ खुदाई शुरू करने के लिये प्रसिद्ध पुरातत्वन डाक्टर स्पूनर भेजे गये। तब से आज तक खुदाई का काम जारी है और अभी इसके पूरा होने में कई साल लगेंगे। इस खुदाई में यहाँ की इमारतों की भव्यता प्रकट होती है। कई बहुमूल्य चीजें मिलती जा रही हैं । इस प्रकार भारतवर्ष के बौद्ध- कालीन इतिहास को पूर्ण करने की बहुत सी चमत्कारपूर्ण सामग्री उपलब्ध होती जा रही है। 'नालन्दा' की खोज 'बड़गाँव' राजगृह से लगभग आठ मील उत्तर की ओर है। पटना जिले के बिहार शरीफ कस्वे से लगभग छः मील दक्षिण है। बख्तियारपुर बिहार लाइट रेलवे के नालन्दा नामक स्टेशन से यह
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