1 I! . २७६ बुद्ध-गया थोड़े दिनों बाद जापान से मि० अोकाकोरा हिन्दुस्तान आये और उन्होंने मन्दिर के आस-पास जमीन खरीदकर जापानी विश्रा- मागार बनाने की चेष्टा की। उन्होंने बौद्ध-गया में स्वामी श्रद्धानन्द और सविता देवी से बात की और वहाँ एक “जापानी हिंदू-संघ खोलने का विचार किया। सरकार को यह बात मालूम हुई और उसने जाना कि इसमें एक महान राजनैतिक पड्यन्त्र है तो उसने बौद्धों को वहाँ से निकालने का हुक्म दे दिया । "लार्ड कर्जन वायसराय थे, उन्होंने एक कमीशन नियतं किया, जिसके सदस्य जस्टिस सुरेन्द्र नाथ और हरप्रसाद शास्त्री'थें शास्त्री जी ने बौद्धों के पक्ष में और मि० जस्टिस ने विपक्ष में मत दिये। रिपोर्ट पर सरकार ने बौद्धनाया से बौद्धों को निकलने का हुक्म दे दिया। अोकाकोरा का विचार ज्यों-का-त्यों रह गया। इसके बाद महन्त ने मन्दिर पर दीवानी मुकदमा दायर किया और उन दोनों विश्रामागार के कमरों पर से भी बौद्धों का अधिकार हट गया और सारे मन्दिर पर महन्त का अधिकार हो गया। इस वक्त मन्दिर पर महन्त ही का अधिकार है, और इसमें कोई शक नहीं कि उनकी पूजा विधि बौद्धों की पूजा-विधि से भिन्न है। बौद्धों को वहाँ पूजा करने से रोका जाता है। यद्यपि साम्प्रदायिकता का जमाना नहीं है फिर भी यह वास्त- विक बात है कि वह मन्दिर बौद्धों का है, अतः उस पर बौद्धों ही का अधिकार होना चाहिये। वहाँ प्रति वर्ष सैंकड़ों बकरे कांटे जाते हैं और चिड़ियों का शिकार किया जाता है।
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