२७३ दो अमर चीनी बौद्ध-भिन्तु "देश की राज्य-प्रणालो उपकारी सिद्धान्तों पर निर्भर होने के कारण शासन-रीति सरल है। राज्य की आय चार मुख्य भागों में,वटी हुई है। एक भाग राज्य का प्रबन्ध चलाने और यज्ञादि के लिये है। दूसरा भाग मन्त्री, प्रधान और अन्य राज-कर्मचारियों की आर्थिक सहायता के लिये है। तीसरा भाग बड़े-बड़े योग्य मनुष्यो क पुरस्कार के लिये है और चौथा भाग धार्मिक पुरुषों को दान करने के लिये है। राज्य कर बिल्कुल हल्के हैं। अधिकांश लोग भूमि जोतते-बोते हैं, उन्हें उपज का छठा भाग कर की भांति देना पड़ता है। व्यापारी लोग बड़ी दूर-दूर वाणिज्य के लिये आते- जाते हैं। नदी-मार्ग तथा सड़कें बहुत थोड़ी चुंगी पर खुले हैं। जब कभी राज-कार्य के लिये मनुष्यों की जरूरत पड़ती है, तो उनसे काम लिया जाता है, पर उनकी पूरी मजदूरी दी जाती है।" "सैनिक लोग सीमा-प्रदेश की रक्षा करते हैं और वे उपद्रवी लोगों को दण्ड देने के लिये भेजे जाते हैं। वे लोग रात्रि के वक्त घोड़ों पर सवार होकर राजमहल के चौतरफ़ पहरा भी देते हैं। सैनिक लोग कार्य की आवश्यकतानुसार रक्खे जाते हैं। उन्हें कुछ द्रव्य देने की प्रतिज्ञा की जाती है और प्रकट रूप से उनका नाम लिखा जाता है। शासकों, मन्त्रियों, दण्डनायकों तथा कर्मचारियों को निर्वाह के लिये भूमि दी जाती है।" ऊपर के वृत्तान्त से विदित होता है कि भारतवर्ष की प्राचीन रीति के अनुसार सब कर्मचारियों को उनकी सेवा के लिए भूमि दी जाती थी। हुएनत्संग ने जो राजा की निजी सम्पत्ति लिखी है
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